Friday, August 28, 2009

परसेवा

किसे सराहना , किसे नकार्ना,
किसके साथ जीवन भर गाना ,
बढा कठिन है इसे सम्झाना
बडा भेद है इसे जनना
मेरी एक पहचन की छबि
पढि-लिखी है, पर न कवी ,
जब-कभी पासा उस्के जाती ,
तो उसको चिन्तित ही पाती ,
अछी बाट किसे है भाती
पर सेवा किसे है आती?
सब स्वर्थी सब धन लोलुप
कामी, अकर्मी , पद -लोलुप
मित्र-अंित्र बनत लोभबस
फल पाता जग अपने कर्मबस
किसे अपना किसे पराया जाने,
किसे सहारा , किसे बेशहर माने
किसके पासा किसके दूर है जाना
किसके लिये जिना , किस्के लिये मरना?

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